म्हारा थारा न्याय होवेगा सत्संग मैं
1. निर्भय ढोल बजाया भक्ति का,
सुन के आवाज हुई प्रसन्न मैं ..........
2. ओढ के चुनरियां गई सत्संग मैं
गुरु हो गए दयाल, भिगोई हरि रंग मैं ..........
3. सुन्न शिखर मैं सेज पिया की,
चढ सेजों पर हुई थी मगन मैं ..........
4. कहे कमाली कबीरा जी की चेली
पीकर प्याली चढी थी सुन्न मैं ..........