सत्संग तो सर्व स्थान है, क्यों भुल्या फिरै दीवाना

 सत्संग तो सर्व स्थान है, क्यों भुल्या फिरै दीवाना 

1. गुरु मेरे तै सत्संग उपजै, ज्ञान रुप सत्संग का भाव
संतों में सत्संग प्रकट होता, शब्दे अपने खेले दाव
जड़ सुन्न मैं गुप्ती रहता, चेतन सुन्न मैं है बरताव 
संत सत्संग की खान है, तूं सुन्न मुर्ख नादाना ........

2. गुरु पिता सत्संग का कहिए, संतों के घर जाया है
क्षमा मात सत्संग की कहिए, संतों ने गोद खिलाया है
निरता नार सत्संग की कहिए, सुरता के संग ब्याहया है
शील और संतोष सन्तान है, इसका घर में पिछाणा ........

3. हृदय कंवल में ज्ञान बसै, त्रिकुटी में पास कराया जा
नाम कंवल में अनुभव जागे, सुर के साथ मिलाया जा
सहस्त्र कंवल में साज बजै ओर कंठ कमल से गाया जा
ब्रह्मांड में रुहानी ज्ञान है, यह सुन मेरा परवाना ........

4. ज्योति शब्द से धुन लागे, सोहंग तै सुर्त चढाई जा
औंकार शब्द से रटना हासेती, रणुकार सै करी कमाई जा
सार शब्द में सुरता रमै, दसवें की पकड़ी राही जा
पंथ कबीर आसमान है, कह धर्मदास गलताना ........



BOL BHAJAN